बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला
बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला
चीखता चिल्लाता एहसास बे आवाज़ हो गया है
प्यार अब प्यार ना रहा रिवाज़ हो गया है
जानता हूँ तुम्हारे दिल में मैं खटकता हूँ
फिर भी तेरे दीदार को मैं भटकता हूँ
क्या हुआ अगर जिंदगी में अकेला हूँ
जिस दिन मर गया मेला लग जायेगा मेरी कब्र पे
उज़ड़ जाते है सर से पाव तक वो लोग
जो किसी बेपरवाह से बेपनाह मोहब्बत करते हैं
बड़ा शौक था उसे मेरा आशियाना देखने का,
जब देखी मेरी गरीबी,रास्ता बदल लिया..!
er kasz
दिल में रहने की इजाजत नहीं मांगी जाती
ये तो वो जगह है जहाँ कब्जा किया जाता है
कर कुछ मेरा भी इलाज ऐ हकीम-ए-मोहब्बत
जिस दिन उसकी याद नहीं आती सोया नहीं जाता
मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी
ग़र हमें बिकना ही होता तो आज यूँ तनहा ना होते
राज़ खोल देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर
कितनी खामोश मोहब्बत की ज़ुबान होती है. !!
जिस्म की बात नही थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है
चाह कर भी पूछ नहीं सकते हाल उनका
डर है कहीं कह ना दे के ये हक तुम्हे किसने दिया
मुनासिब समझो तो सिर्फ इतना ही बता दो
दिल बेचैन है बहुत,कहीं तुम उदास तो नहीं...
ज़िन्दगी का ये हूनर भी आज़माना चाहिए
जंग अगर अपनो से हो तो हार जाना चाहिए
er kasz
कभी तो आप हद से आगे बढ़ा करो
कभी तो आप खुद को हमारी शायरी में पढा करो
Er kasz