यादें भी क्या क्या करा देती हैं
कोई शायर हो गया कोई खामोश

जी केसे भर जाए तुजसे दोस्त
तू मेरी कभी न मिटनेवाली भूख हे

क्यों इतना दर्द क्यों घुटन इतनी
जो टूट गया ख्वाब ही तो था

हर सजा कबूल की सर झूका के हमने
कसूर बस ये था की बेक़सूर थे हम

अदा जीने की क़तरे ने सिखा दी

फ़ना हो के समुंदर हो गया है

सारी दुनिया की खुशी अपनी जगह
उन सबके बीच तेरी कमी अपनी जगह

कैसे फलेगी ये गूंगी मुहोब्बत
न हम बोलते हैं ना वो बोलते है

फिर हाज़िर हैं आपकी अंजुमन में
कोई नया दर्द हो तो ज़रूर देना

वो अजनबी फिर से ख़ास हो रहा है,
लगता है फिर से प्यार हो रहा है..!!

भले ही अपने जीगरी दोस्त कम हैं
पर जीतने भी है परमाणु बम हैं

दर्द बनाकर रख लो मुझे
सुना है दर्द बहुत वक्त तक साथ रहता है

इससे बड़ी जीत मेरी क्या होगी
कि ये दिल सिर्फ तुम पे हारा है

मै रोज खून का दिया जलाऊगां
ऐ इश्क तू एक बार अपनी मजार तो बता

मैं तो हर पल खुसी देता हूँ तुम्हें
तुम ये गम लाते कहाँ से हो

कभी फूर्सत मे हिसाब करेगे
मेरी वफाऐ ज्यादा थी या तेरे सितम