मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी
ग़र हमें बिकना ही होता तो आज यूँ तनहा ना होते
मैंने कब कहा कीमत समझो तुम मेरी
ग़र हमें बिकना ही होता तो आज यूँ तनहा ना होते
राज़ खोल देते हैं नाज़ुक से इशारे अक्सर
कितनी खामोश मोहब्बत की ज़ुबान होती है. !!
अजीब से अंदाज में सवाल पूछा उसने लबों पर लब रख कर
बोले आखिर तुम चाहते क्या हो
दर्द हमेशा अपने ही देते है वरना गैरो को क्या पता कि
तकलीफ किस बात से होती है।
जिस्म की बात नही थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है
इतना सा मेरे पे एहसान किया कर,
मेरी आँखों में देख के मेरा दर्द पेहचान लिया कर.
आज जा कर के उसने सच में भुलाया है मुझे
वरना ये हिचकियां पानी से तो नही जाती थी
मुनासिब समझो तो सिर्फ इतना ही बता दो
दिल बेचैन है बहुत,कहीं तुम उदास तो नहीं...
चाह कर भी पूछ नहीं सकते हाल उनका
डर है कहीं कह ना दे के ये हक तुम्हे किसने दिया
जब से मिले हो सफर ए जिंदगी आसान सी लगती है
ना मिलते तो कोई और इसे आसान बना देता
ज़िन्दगी का ये हूनर भी आज़माना चाहिए
जंग अगर अपनो से हो तो हार जाना चाहिए
er kasz
कभी तो आप हद से आगे बढ़ा करो
कभी तो आप खुद को हमारी शायरी में पढा करो
Er kasz
तेरी यादों के नशे का आदि है ये दिल
जो इसका नशा न करू तो दिल धड़कने से मना करता है
तुमने कहा था आँख भर के देख लिया करो मुझे
मगर अब आँख भर आती है तुम नजर नही आते हो
शिकायत मौत से नहीँ अपनो से थी मुझे
ज़रा सी आँख बंद क्या हुई वो कब्र खोदने लगे !