नफरत सी हो जाएगी तुम्हे भी इस दुनिया से
मोहब्बत किसी से तुम बेसुमार कर के देखना

ढूंढते हो क्या इन आँखों में कहानी हमारी
खुद में ग़ुम रहना तो आदत है पुरानी हमारी

मुझे तेरी खूबियाँ और खामियाँ सब है अज़ीज
तू मुझे कुछ कुछ नहीं सारे का सारा चाहिए

उसके खवाब से कटकर जियूँ तो ऐ मेरे खुदा
उसी लम्हा छीन लेना मुझसे तू ज़िन्दगी मेरी

गर इसी रफ़्तार से मानेंगे सब खुद को खुदा
एक दिन दुनिया में बन्दों की कमी हो जाएगी

मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है
बोला साहब लहू का दौर है शराब कौन पीता है

कीसी रोज फुरसत मिले तो आना हमारी महफिल में
हम शायरी नहीं दर्दे ए इश्क सुनाते है

मुमकिन है कि तेरे बाद भी आती होंगी बहारें
गुलशन में तेरे बाद कभी जा कर नहीं देखा

जिस जिस को मिली खबर सबने एक ही सवाल किया
तुमने क्यों की मुहब्बत तुम तो समझदार थे

देखकर तुमको अकसर हमें एहसास होता है.
कभी कभी ग़म देने वाला भी कितना ख़ास होता है

तेरे ज़िक्र भर से हो जाती है मुलाक़ात जैसे
तेरे नाम से भी इस क़दर इश्क़ है मुझ को

वो तो अपनी एक आदत को भी ना बदल सकी
जाने क्यूँ मैंने उसके लिए अपनी जिंदगी बदल डाली

वो जो बन के दुश्मन मुझे जीतने को निकले थे
कर लेते अगर मोहब्बत मैं खुद ही हार जाता

पगली तेरी महोब्बत ने मेरा ये हाल कर दिया है
मैं नहीं रोता लोग मुझे देख कर रोते है

टुकड़े पड़े थे राह में किसी हसीना की तस्वीर के,
लगता है कोई दीवाना आज समझदार हो गया.