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तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँवरना
तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँवरना
तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँ
वरना कलम से अपनी कुछ ख़ास दोस्ती नहीं
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कहीं शेर ओ नग़्मा बन के
उदास हूँ पर तुझसे नाराज़ नहीं;
तेरी रूह का मेरी रूह से
आईने में भी खुद को झांक
लोगों ने कहा तुम उसको याद
हम फिर उनके रूठ जाने पर
मौसम बदलते बदलती ये परछाईयाना बदले
तेरे हर ग़म को अपनी रूह
मुनासिब समझो तो सिर्फ इतना ही
मेरी चाहत को अपनी मोहब्बत बना
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