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Dard Shayari
वो महफिल में अपनी वफ़ा का
वो महफिल में अपनी वफ़ा का
वो महफिल में अपनी वफ़ा का जिक्र कर रही थी,
जब नजर मुझ पर पड़ी तो बात ही बदल दी
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नाम खुद कमाना पड़ता है और
आसरा इक उम्मीद का देके मुझ
मैं मशहूर होके भी क्या करूँ
पगली कहती थी कि वो मेरी
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं कि मेरे
तुम्हें नींद नहीं आती तो कोई
किसी के भी पीछे इतना न
इतना दर्द तो मरने से भी
तुम्हे इंसान पहचानना बिलकुल नहीं आताहमेशा
दूरियो से फ़र्क नही पड़ता है
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