जाने क्यूँ अपने हुस्न पर इतना गुरूर है उसे लगता है
उसका आधार कार्ड अब तक नहीं बना है
जाने क्यूँ अपने हुस्न पर इतना गुरूर है उसे लगता है
उसका आधार कार्ड अब तक नहीं बना है
मेरा यही अन्दाज इस जमाने को खलता है
की ये साला इतना टुटने के बाद भी सीधा कैसे चलता है
उस वक़्त , उसके दिल में भी , बहुत दर्द उठेगा ......
हमसे बिछड़ के , जब हमारे , हमनाम मिलेंगे ........!!"
सस्ता सा कोई इलाज़ बता दो इस मोह्ब्बत का
एक गरीब इश्क़ कर बैठा है इस महंगाई के दौर मैं
हम ना पा सके तुझे मुदतो के चाहने के बाद
ओर किसी ने अपना बना लिया तुझे चंद रसमे निभा के
शायरी से ज्यादा प्यार मुझे कहीं नही मिला..
ये सिर्फ वही बोलती है, जो मेरा दिल कहता है…
क्या हुआ अगर मेरे लब तेरे लब से लग गये
नाराज़ क्यूँ हो रही हो माफ़ ना करो तो बदला ही ले लो
"मै तेरी मजबूरिया समझता था इसलिए जाने दिया...
अब तु भी मेरी मजबूरिया समझ और वापस आ जा...!!"
सोचा था सुनाएंगे सब गिले शिकवे उन्हें
मगर उनसे इतना भी न हुआ कि पूछें खामोश क्यूँ हो
ग़र तुम्हे अपना कहें तो तुम्हे कोई शिकवा तो नहीं
जमाना पूछता है बता तेरा अपना कौन है
मुहब्बत के ये आंसू है इन्हें आँखों में रहने दो
शरीफों के घरों का मसला बाहर नहीं जाता
मैने उस से कहा बहुत प्यार आता है तुम पर...
उसने कहा- और तुम गरीब लोगोँ को आता भी
क्या है ??
हर "जुर्म" पे उठती हैं उँगलियाँ मेरी तरफ__
क्या "मेरे" सिवा शहर में "मासूम" हैं सारे।
हमारे दुश्मनों को हमारे सामने सर उठाने की हिम्मत नही
और वो पगली दिल से खेल कर चली गयी
मौत को तो लोग यूहीं बदनाम करते है ।
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तकलीफ तो सुबह सुबह ठंडा पानी देता है ।