जब रूह किसी बोझ से थक जाती है; एहसास की लौ और भी बढ़ जाती है; मैं बढ़ता हूँ ज़िन्दगी की तरफ लेकिन; ज़ंजीर सी पाँव में छनक जाती है।
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जब रूह किसी बोझ से थक जाती है; एहसास की लौ और भी बढ़ जाती है; मैं बढ़ता हूँ ज़िन्दगी की तरफ लेकिन; ज़ंजीर सी पाँव में छनक जाती है।
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