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Maa Shayari
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है न किताबें बोल पाती हैं
मेरे दर्द के थे दो गवाह दोनों बे-जुबान निकले
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खामोशियों की भी धीमी सी आवाज़
ज़िन्दगी में हमेशा नए दोस्त मिलेंगे;
नजर झुका के बात कर पगलीनजर
एक हसीन पल की ज़रूरत है
दोस्ती की कसक को दिखाया जाता
दोस्ती एक मिसाल है जहाँ कोई
दूरियों से फर्क पड़ता नहीं; बात
रिश्तों की ये दुनियाँ है निराली;
दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभानेवाला;
एक दिन प्यार और दोस्ती मिले
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