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Narazgi Shayari
इंतिजार है मुझे नफ़रत करने वाले
इंतिजार है मुझे नफ़रत करने वाले
इंतिजार है मुझे नफ़रत करने वाले कुछ नए लोगो का
पुराने नफ़रत करने वाले तो अब मुझे पसंद करने लगे है
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तमाम ठोकरें खाने के बाद ये
हर जुर्म पे उठती हैं उँगलियाँ
"अपने काम से मतलब रखते हैबेमतलब
कोशिश के बाद भी जो मुकम्मल
तुम्हारी औकात इतनी नही किए हमारा
दर्द ऐ महोबत तो हमने भी
कभी भी ख़ुशी मे शायरी नहीं
सिकंदर तो हम अपनी मर्जी से
और भी बनती लकीरें दर्द की
जिस घाव से खून नहीं निकलतासमज
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