खिलौने दे के बहलाया गया हुँ
कफन में क्यूँ ना जाऊँ मुह छुपा के
भरी महफिल में उठाया गया हुँ
खिलौने दे के बहलाया गया हुँ
कफन में क्यूँ ना जाऊँ मुह छुपा के
भरी महफिल में उठाया गया हुँ
वो जो कहते थे मिटा देगे हर याद मेरी दिल से
सुना है फकीरा उन से मेरा नाम तक न लिख कर मिटाया गया
जान जब प्यारी थी कम्बखत उस वक्त वो भी हमारी थी
आज जब मरने का शोक है तो एक भी क़ातिल नज़र नही आता
झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती
वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत हैं,
वो रोज नया जख्म देती थी मेरी ख़ुशी के लिए…
स्क्रीन टच करने वाली तो हजारों मिली
yarro लेकिन तलाश है मुझे उस छोरी की जो दिल को टचकर जाये
बहुत देर करदी तुमने धडकनें महसूस करने में
वो दिल नीलाम हो गया जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी
मोहब्बत छोड के हर एक जुर्म कर लेना
वरना तुम भी मुसाफिर बन जाओगे हमारी तरह इन तन्हा रातों के
परेशानियों ने भी क्या खूब याद रखा मेरे घर का पता
वो तो खुशियाँ ही थी कमबख्त जो आवारा निकली।
वक़्त और दोस्त मिलते तो मुफ्त हैं
लेकिन उनकी कीमत का अंदाज़ा तब होता हैजब ये कहीं खो जाते हैं
बेहद करीब है वो शख्स आज भी मेरे इस दिल के
जिसने खामोशियों का सहारा ले दूरियों को अंजाम दिया
लेने गया था मुहब्बत की चादर इश्क के बाजार से
सोचा कफ़न भी ले लूं अक्सर महबूब बेवफ़ा होते है
कुर्बान हो गया मैं उस सख्श की हाथों की लकीरों पर
जिसने तुझे माँगा भी नहीं और तुझे पा भी लिया
किसी भी मुश्किल का अब किसी को हल नही मिलता; शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नही निकलता...
मैं कभी बुरा नहीं था उसने मुझे बुरा कह दिया
फिर मैं बुरा बन गया ताकि उन्हें कोई जुठा न कह सके