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Sad Shayari
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर
सिलवटें ही सिलवटें थी बिस्तर पर सुबह
यादों की करवटें ही करवटें थी रात भर
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ज़रा देखना दरवाज़े पे कोई कुछ
किन चिरागों की बात करते होसब
आसमां में मत ढूँढ अपने सपनों
रोये वो इस कदर उनकी लाश
पगली तेरी ख़ामोशी अगर तेरी मज़बूरी
मैंने पूछा क्यूँ आये मेरी जिंदगी
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है
कोई इल्जाम रह गया हो तो
हमको खरीदने की कोशिश मत करना
सिकंदर तो हम अपनी मर्जी से
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