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Taarif Shayari
ज़माना बन जाए कागज़ का; और
ज़माना बन जाए कागज़ का; और
ज़माना बन जाए कागज़ का; और समंदर हो जाए स्याही का; फिर भी कलम लिख नहीं सकती; दर्द तेरी जुदाई का।
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सारा दिन लग जाता है खुद
हर घड़ी सोचते हैं भलाई तेरी;
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यों
रोती हुई आँखो मे इंतेज़ार होता
दिल नहीं लगता आपको देखे बिना;
हौंसला तो तुझमे भी ना था
तमन्ना से नहीं तनहाई से डरते
सुन लिया हम ने फैसला तेरा;
मुहब्बत नहीं है नाम सिर्फ पा
आज मैंने उनको खफा कर दिया;
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