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Taarif Shayari
थी वस्ल में भी फ़िक्रएजुदाई तमाम
थी वस्ल में भी फ़िक्रएजुदाई तमाम
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब; वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब।
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होंठो पे कभी उनके मेरा नाम
आँखों के सागर में ये जलन
तुम मिल जाओगे जब कभी; तो
तेरी याद में आंसुओं का समंदर
ऐ दोस्त कभी ज़िक्रएजुदाई न करना;
तमन्ना से नहीं तनहाई से डरते
मेरी गली से वो जब भी
ये शमा मेहमान है दो घडी
औकात क्या है तेरी ए जिँदगीचार
हमारी किस्मत हमें दगा दे गई;
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