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Taarif Shayari
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़ न कोई रुस्वाई मीर; दिन बहुत हो गए यारों ने कोई इनायत नहीं की।
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अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता
खुद के लिए इक सज़ा मुकर्रर
राज ज़ाहिर ना होने दो तो
तू है मुझमें शामिल इस तरह;
तेरी आवाज़ की शहनाइयों से प्यार
आँखों के इंतज़ार का दे कर
तुम ना समझोगे इस तन्हाई के
तन्हाई जब मुक़द्दर में लिखी है;
मंजिल ढूंढ़ते ढूंढ़ते आज मुझे एहसास
सुन लिया हम ने फैसला तेरा;
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