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Taarif Shayari
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़
न कोई इल्ज़ाम न कोई तंज़ न कोई रुस्वाई मीर; दिन बहुत हो गए यारों ने कोई इनायत नहीं की।
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सर्द रातों को सताती है जुदाई
खुद के लिए इक सज़ा मुकर्रर
आप को खोने का हर पल
आज कुछ कमी है तेरे बगैर;
अगर यूँ ही ये दिल सताता
तेरी आवाज़ की शहनाइयों से प्यार
जिसने हमको चाहा उसे हम चाह
जिनके मिलते ही ज़िन्दगी में ख़ुशी
ज़ुबान खामोश आँखों में नमी होगी;
"सूरज के सामने रात नहीं होती
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