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Dard Shayari
तुझे मालूम भी है कितना तलबगार
तुझे मालूम भी है कितना तलबगार
तुझे मालूम भी है कितना तलबगार हूँ तेरा
पुछ उन फ़रिश्तों से जो रोज़ लीखते है दुअा मेरी
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हमारी कद्र उनको होगी तन्हाईयो में
क्यों इतना दर्द क्यों घुटन इतनीजो
तेरी चाहत में तेरी मोहब्बत में
एक ही सख्श था मेरे मतलब
मोहब्बत भी तूने क्या चीज़ बनायी
लिख दे मेरा अगला जनम उसके
बेटियों के जन्म पर मातम मनाने
पता नही ये बादल क्यूँ भटक
तू इक क़दम भी जो मेरी
quot;दर्दquot; वो है जो दूसरों को
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