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गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो का
वरना मैं भी लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर रखता हुँ
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एक मूर्ति बेचने वाले गरीब कलाकार
छू ना सकूं आसमान ना सहीदिल
मैं श्रेष्ठ हूँ यह आत्मविश्वास है
हर जगह मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे
मंजिले कितनी भी ऊँची होपर रास्ते
शेरों को कहना नया शिकारी आया
अल्फ़ाज़ों का हुनर भी क्या खूब
दरवाज़े बड़े करवा लिए हैं अब
खुद की तरक्की में इतना समय
वक्त ने कई जख्म भर दिए
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