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Two Lines
Sad Shayari
किस गुनाह की दिलवर दे रहे
किस गुनाह की दिलवर दे रहे
किस गुनाह की दिलवर दे रहे हो मुझे सजा
दिल तोड़ के हमसे रूठ के बैठे हो क्यूं हो तुम मुझसे खफा
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दफ़न हे मुझमे मेरी कितनी रौनके
नीलाम कुछ इस कदर हुए बाज़ारएवफ़ा
कर कुछ मेरा भी इलाज ऐ
रुठुंगा अगर तुजसे तो इस कदर
कुछ पल के लीये ही मुझे
मंजिल का नाराज होना भी जायज
एक तो ये गर्मी और एक
जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता
सावन के मोसम में भी तड़पता
Gumnami Ka Andhera Kuch Is Tarah
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