तू जितना चाहे रूला ले मुझको ऐ जिन्दगी
हंसकर गुजार दूँगा तुझको, मेरी भी ये जिद्द है"
तू जितना चाहे रूला ले मुझको ऐ जिन्दगी
हंसकर गुजार दूँगा तुझको, मेरी भी ये जिद्द है"
जरा बताओ तो किसे गुरुर है अपनी दौलत पर
चलो उसे बादशाहों से भरा कब्रस्तान दिखाता हु
अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी
काम मजदूरों वाले कराती हैं और लोग साहब कहकर बुलाते हैं
देख ली ना मेरे आँसू की ताकत तुमने
रात मेरी आँखें नम थी
.
आज तेरा सारा शहर भीगा हैं ..
मत पूछो कैसे गुजरता है हर पल तुम्हारे बिना
कभी बात करने की हसरत कभी देखने की तमन्ना
हमारा तर्जुबा हमें ये भी सिखाता है
जो जितना मक्खन लगाता है वो उतना ही चूना लगाता है
शेर को सवा शेर कही ना कही जरुर मिलता है,
और रही बात हमारी तो हम तो बचपन से ही शिकारी है..
आज कुछ नही है मेरे शब्दों के गुलदस्ते में....
कभी-कभी मेरी ख़ामोशियाँ भी पढ़ लिया करो....
तुम न लगा पाओगे अंदाजा मेरी बर्बादियों का
तुमने देखा ही कहा है मुझे शाम होने के बाद
रिश्वत भी नहीं लेती कम्बख्त जान छोड़ने
की….!
ये तेरी याद मुझे बहुत ईमानदार लगती है.
क्या लिखूँ अपनी जिंदगी के बारे में दोस्तों
वो लोग ही बिछड़ गए जो जिंदगी हुआ करते थे
तेरी यादें अक्सर छेड़ जाया करती हैं
कभी अा़ँखों का पानी बनकर कभी हवा का झोंका बनकर
वो महफिल में अपनी वफ़ा का जिक्र कर रही थी,
जब नजर मुझ पर पड़ी तो बात ही बदल दी
मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है
उसने कहा साहब लहू का दौर है शराब कौन पीता है
सिमटते जा रहें हैं दिल और ज़ज्बात के रिश्ते
सौदा करने मे जो माहिर है बस वही धनवान है