बडा अजीब होता है ये मोहब्बत का खेल भी
एक थक जाये तो दोनो हार जाते हैं

लिखने को अब क्या बचा कबिरा तेरे बाद
हम तो यूँ ही कर रहे काग़ज़ को बरबाद

लगा के आग दिल में चले हो कहाँ हमदम
अभी तो राख उड़ने पे तमाशा और भी होगा

जो ना समझ है वो ही मोहब्बत करता है
वो मोहब्बत ही क्या जो समझ में आ जाए

ये मासूमियत का कौन सा अन्दाज़ है,
पर काट कर कह दिया कि,अब तुम आजाद हो।

मुझे बना के वो खुदा भी सोच मे पड गया के इस
पगले के लिए पगली कैसी बनाये

लिखने को अब क्या बचा ,कबिरा तेरे बाद
हम तो यूँ ही कर रहे ,काग़ज़ को बरबाद

में लखेलो दई गया,पोते लखेलो लई गया,
छे हजी संबंध के ए पत्र बदलावी गया..!!

हसरत थी की कभी वो भी हमे मनाये..
पर ये कम्ब्खत दिल कभी उनसे रूठा ही नही..

वो आँखें झुक गयीं मुझे देख कर
यकीनन उसने कभी मुझे चाहा तो ज़रूर होगा

शायरी से भरे पन्नों को छूकर देखा है कभी...
कोई दिल वहाँ भी धड़का करता है.. .

ये कलम आज थोड़ी रूठी सी लग रही है
आओ भरे उसे थोड़े जज्बातों की स्याही से

लड़की ढूंढनी होती तो कबकी ढूँढ लेते….
हम तो बादशाह है रानी ही ढूंढेग!.

लड़कियां भले ही आईफोन 6 ले ले दोस्तो
पर आना हम लडको के पास मिस कॉल ही है

नज़र-नज़र का फर्क है, हुस्न का नहीं ;
महबूब जिसका भी हो बेमिसाल होता है !!