काश वो भी बेचैन होकर कह दे मेँ भी तन्हा हूँ
तेरे बिन तेरी तरह तेरी कसम तेरे लिए
Er kasz

दीदार-ए-यार की खातिर जिन्दा हूँ ग़ालिब
वर्ना कौन जीता है इस दुनिया में तमाशा बन कर

लपेट ली है मैंने तेरे अहसास की चादर
पता है मुझे आज फिर तेरी यादों की बारिश तेज़ है

नादान है बहुत जरा तुम ही समझाओ यार उसे
कि यूँ खत को फाड़ने से मोहब्बत कम नहीं होती

मैं वो हूँ जो कहता था की इश्क़ मे क्या रखा है
आजकल एक हीर ने मुझे रांझा बना रखा है
er kasz

न शिकायतें न सवाल है कोई आसरा न मलाल है
तेरी बेरुखी भी कमाल थी मेरा जब्त भी कमाल है

बरसों से कायम है इश्क़ अपने उसूलों पर
ये कल भी तकलीफ देता था ये आज भी तकलीफ देता है

कैसे गुजरती है हर शाम मेरी तेरे बिना
बस एक बार तू देख ले,तो कभी तन्हा ना छोड़े मुझे

आज किसी ने बातों बातों में जब उन का नाम लिया
दिल ने जैसे एक पल के लिए धडकना छोड दिया

कुछ नया नहीं आज फिर तेरी याद आने पर एक खत लिखा
और फिर फाड़कर उसे बहुत देर तक रोता रहा

उसकी याद में दिल चीख-चीख कर रोता हैं
और दुनियाँ कहती हैं इश्क बेजुबान होता हैं
Er kasz

मेरी लिखी किताब मेरे ही हाथो मे देकर वो कहने लगी
इसे पढा करो मोहब्बत सीख जाओगे
er kasz

फैसले से पहेले कैसे मान लूं हार क्योंकी
वक्त अभी जीता नहीँ और मैं अभी हारा नही
er kasz

ज़िन्दगी यूँ ही बहुत कम है मुहब्बत के लिए

फिर रूठकर वक़्त गंवाने की जरूरत क्या है

उस बेवफा ने मेरा ख़त बड़ी बेदर्दी से फाड़ा
मेरे शब्दों की हिचकियां मेरे दरवाजे तक आई