कभी किसी से प्यार मत करना; हो जाए तो इनकार मत करना; निभा सको तो चलना उसकी राह पर; वरना किसी की ज़िंदगी बरबाद मत करना।
कभी किसी से प्यार मत करना; हो जाए तो इनकार मत करना; निभा सको तो चलना उसकी राह पर; वरना किसी की ज़िंदगी बरबाद मत करना।
मजरूह लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम; हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह। शब्दार्थ: अहल-ए-वफ़ा = वफ़ा के चाहने वाले लोग
आंखो मैं जब भी आंसू होते है तब अक्सर मैं ये कहती हूं की
आंखों मैं कचरा चला गया हैं ताकी कोइ मेरे दर्द को पहचान न ले
प्यास बुझानी है तो उड़ जा पंछी शहर की सरहदों से दूर,
यहाँ तो तेरे हिस्से का पानी भी प्लास्टिक की बोतलों में बंद है..
अच्छे के साथ अच्छे रहे लेकिन बुरे के साथ बुरे नहीं बने
क्योंकि
पानी से खून साफ कर सकते है लेकिन खून से खून नहीं
दर्द दे गए सितम भी दे गए; ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए; दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का; और हमें कभी ना रोने की कसम दे गए।
जाते वक्त बहोत गुरूर से कहा था उसने....
"तुम जैसे हजार मिलेंगे"
मैंने मुस्कुरा कर कहा.... " मुझ जैसे
की ही तलाश क्यों..?? "
न वो सपना देखो जो टूट जाये; न वो हाथ थामो जो छूट जाये; मत आने दो किसी को करीब इतना; कि उसके दूर जाने से इंसान खुद से रूठ जाये।
किसी को खुश करने का मौका मिले तो खुदगर्ज ना बन जाना ऐ दोस्त
बड़े नसीब वाले होते है वो जो दे पाते है मुस्कान किसी चेहरे पर
जब मां छोड़कर जाती है तब दुनिया में कोई दुआ देने वाला नही होता
और जब पिता छोड़कर जाता है तब कोई हौसला देने वाला नही होता
मुझे मालूम था कि वो रास्ते कभी मेरी मंजिल तक नहीं जाते थे
फिर भी मैं चलता रहा क्यूँ कि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे
काश यह जालिम जुदाई न होती! ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती! न हम उनसे मिलते न प्यार होता! ज़िन्दगी जो अपनी थी वो परायी न होती!
बिन बात के ही रूठने की आदत है; किसी अपने का साथ पाने की चाहत है; आप खुश रहें मेरा क्या है; मैं तो आइना हूँ मुझे तो टूटने की आदत है!
आँसू गिरने की आहट नही होती; दिल के टूटने की आवाज नहीं होती; गर होता उन्हें एहसास दर्द का; तो दर्द देने की उन्हें आदत नहीं होती।
क्या गिला करें उन बातों से;क्या शिक़वा करें उन रातों से;कहें भला किसकी खता इसे हम;कोई खेल गया फिर से जज़बातों से।