“नसीब का लिखा तो मील ही जायेगा,
या रब,
देना हे तो वो दे जो तकदीर मे ना हो”..!!!

बहुत गुमान है तुझे नाम पर अपने मगर
उससे कहीं ज्यादा है कीमत मेरे ईमान की

मेरे लफ्जों की पहचान अगर वो कर लेता
उसे मुझसे नही खुद से मोहब्बत हो जाती

तू मिली नही मझको ये मुकद्दर की बात है
बड़ा सुकून पाता था तम्हे अपना सोचकर

वक़्त लेता है करवटे न जाने कैसे कैसे
उम्र इतनी न थी जितने सबक सिख लिए हमने

मेरे काफ़िले को किसने लूटा खुदा जाने मगर
राह में नक्श-ए-कदम यार के पाये गए

तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समजा
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही

इक बात कहूँ इश्क बुरा तो नहीँ मानोगे
बङी मौज के थे दिन तेरी पहचान से पहले

वो जो औरों को बताता है जीने के तरीके
खुद मुट्ठी में मेरी जान लिए फिरता है

कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी
हजारो अपने है मगर याद तुम ही आते हो

उलझा दिया दीमक ने ये कैसे शरारत की
कागज तो नहीं चाटा तहरीर मिटा दी है
Ek musafi

ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है, सब कहते थे।
जिस दिन तुझे देखा, यकीन भी हो गया।

किस्मत बुरी या मैं बुरा फैसला हो न सका
मैं सबका होता गया कोई मेरा हो न सका

मुझसे अगर पूछना है तो मेरे जज्बात पूछ,
जात और औकात तो सारी दुनिया को पता ह

जब मेरी नब्ज देखी हकिम ने तो ये कहा
कोई जिन्दा हे इसमे लेकीन ये मर चुका है