जाने क्यूँ अपने हुस्न पर इतना गुरूर है उसे लगता है
उसका आधार कार्ड अब तक नहीं बना है
जाने क्यूँ अपने हुस्न पर इतना गुरूर है उसे लगता है
उसका आधार कार्ड अब तक नहीं बना है
मुझे जिंदगी का तजूर्बा तो नहीं पर इतना मालूम है
छोटा इंसान बडे मौके पर काम आ सकता है
रात पूरी जाग कर गुजारूं तेरी खातिर
एक बार कह कर तो देख मुझे भी तेरे बिना नींद नही आती
मेरा यही अन्दाज इस जमाने को खलता है
की ये साला इतना टुटने के बाद भी सीधा कैसे चलता है
तू मिले या ना मिले ये मेरे मुकद्दर कि बात है मगर
सुकून बहुत मिलता है तूझे अपना सोच कर
उस वक़्त , उसके दिल में भी , बहुत दर्द उठेगा ......
हमसे बिछड़ के , जब हमारे , हमनाम मिलेंगे ........!!"
बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर आँख बिस्तर पर ही खुलती थी
सस्ता सा कोई इलाज़ बता दो इस मोह्ब्बत का
एक गरीब इश्क़ कर बैठा है इस महंगाई के दौर मैं
भूले हैं रफ्ता-रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम; किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए।
हम ना पा सके तुझे मुदतो के चाहने के बाद
ओर किसी ने अपना बना लिया तुझे चंद रसमे निभा के
उनसे कहना की क़िस्मत पे ईतना नाज ना करे
हमने बारिश मैं भी जलते हुए मकान देखें हैं
er kasz
क्या हुआ अगर मेरे लब तेरे लब से लग गये
नाराज़ क्यूँ हो रही हो माफ़ ना करो तो बदला ही ले लो
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों"मैं खुद
हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..
"मै तेरी मजबूरिया समझता था इसलिए जाने दिया...
अब तु भी मेरी मजबूरिया समझ और वापस आ जा...!!"
तुझको भी जब अपनी कसमें अपने वादे याद नहीं; हम भी अपने ख्वाब तेरी आँखों में रख कर भूल गए।