किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर; ईश्वर बैठा है तू हिसाब ना कर।
किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर; ईश्वर बैठा है तू हिसाब ना कर।
तू जाहिर है लफ्ज़ों में मेरे
मैं गुमनाम हुँ खामोशियों में तेरी
जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ
वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते
मैंने तुझे शब्दों में महसूस किया है
लोग तो तस्वीर पसंद करते हैं
तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँ
वरना कलम से अपनी कुछ ख़ास दोस्ती नहीं
थी जिसकी मौहब्बत में मौत भी मंजुर
आज उसकी नफरत ने जिना सिखा दिया
खुद ही मुस्कुरा रहे हो साहिब
पागल हो या मोहब्बत की शुरूआत हुई है
इतना दर्द तो मरने से भी न होगा
जितना दर्द तेरी ख़ामोशी ने दिया था
मैंने अपनी मौत की अफवाह उड़ाई थी,
दुश्मन भी कह उठे आदमी अच्छा था...!!!
अब उस नासमझ को समझाना छोड़ दिया
अब उसकी नासमझी से भी प्यार हो गया
एक अख़बार हूँ ओकात ही क्या मेरी; मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ..
जल के आशियाँ अपना ख़ाक हो चुका कब का; आज तक ये आलम है रोशनी से डरते है।
कदमो को रुकने का हुनर नहीं आया
सभी मंजिले निकल गयी पर घर नहीं आया
वो मंदिर भी जाता है और मस्जिद भी
परेशान पति का, कोई मज़हब नहीं होता
कभी उदास बेठे हो तो बताना पागल
हम फिर से दिल दे देंगे खेलने के लिए