टूटता हुआ तारा सबकी दुआ पूरी करता है
क्यों के उसे टूटने का दर्द मालूम होता है

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी; तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।

तन्हाईयों में बैठ कर तुम क्या सोचते हो क्या
कुछ हमें भी बताआे परेशान हम भी है

मुनासिब समझो तो सिर्फ इतना ही बता दो
दिल बैचैन हैं बहुत कहीं तुम उदास तो नहीं

मोहब्बत तेरी सूरत से नही तेरे किरदार से हे
शौक ऐ हूस्न होता तो बाजार चले जाते

ये दिल कम्बख़्त मानता ही नहीं
ज़रा आओ इसे समझाओ कि तुम मेरे नहीं किसी और के हो

सुना था दिल समंदर से भी गहरा होता है हैरान हूँ
समाया नही इसमे तेरे सिवा और कोई

दोनों ही बातों से तेरी एतराज है मुझको
क्यूँ तू जिंदगी में आई और क्यूँ चली गयी.

गजल पढ़ी हमने उनके लबों को चूमकर
फिर वो नादान हमसे ज़िद करने लगी क़ि फिर से सुनाओ

मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुये

मेरी बरबादियों में तेरा ही हाथ है मगर
में सबसे कह रहा हूँ ये मुकद्दर की बात है

हम मतलबी नहीं कि चाहने वाले को धोखा दें,,
बस हमें समझना हर किसी के बस की बात नही...!

अगर रुक जाये मेरी धड़कन तो इसे मौत न समझना
अक्सर ऐसा हुआ है तुझे याद करते करते

आग लगना मेरी फितरत में नही
पर लोग मेरी सादगी से ही जल जाये उस में मेरा कया कसूर

"मेरा एक हाथ पूरी दुनिया से लडने के लीये काफी है..
एकबार तू दूसरा थामकर तो देख..."