हमें पता था तेरी फितरत में है दगावाजी
हमने तो मौहब्बत ईसलिए कि थी शायद तेरी सोच बदल जाये

गिले-सिकवे में उलझ कर रह गयी मौहब्बत अपनी
समझ में नही आता मौहब्बत चल रही थी या कोई मुकदमा

जला के ख्वाबों को देखो हमने जिंदगी आसान कर ली
एक मुट्ठी फिर खाख की चुपके से दामन में भर ली

सूरत नहीं देखी तेरी अरसे से
बस वो आखिरी बार का मुस्कुरा के मिलना आज भी जीने की वजह है मेरी

उलझा हुआ हूँ अभी मैं अपनी उलझनों में
तुम ये ना समझना ना कि तुम्हें चाहा था बस दो दिन के लिए

ये तेरे याद के बादल जो बसते हे इन आँखों में काजल की तरह
यूँ बेवजह बरस जाना तो इनकी आदत ना थी

तुमने कहा था हर शाम तेरे साथ गुजारेगे,
तुम बदल चुके हो या फिर तेरे शहर में शाम ही नहीं होती?

मेरी पागल सी मोहब्बत तुम्हे बहुत याद आएगी
जब हँसाने वाले कम और रुलाने वाले ज्यादा होंगे

तुम्हारी ज़िद बेमानी है दिल ने हार कब मानी है
कर ही लेगा वश में तुम्हें आदत इसकी पुरानी है

कल रात मैंने अपने सारे ग़म कमरे की दीवारों पे लिख डाले
बस हम सोते रहे और दीवारें रोती रहीं

शोख नहीं है मुझे फ़ोटो खिंचाने का, पर क्या करू, मेरी रानी को मेरा फ़ोटो देखे बिना नींद नहीं आती....

मेरी फितरत में नहीं है किसी से नाराज होना
नाराज वो होते हैं जिन को अपने आप पे गुरूर होता है

वो जो कहते थे मिटा देगे हर याद मेरी दिल से
सुना है फकीरा उन से मेरा नाम तक न लिख कर मिटाया गया

वो खुद पर गरूर करते है तो इसमें हैरत की
कोई बात नहीं जिन्हें हम चाहते है वो आम हो ही नहीं सकते

जरूरत और चाहत में बहुत फ़र्क है
कमबख्त़ इसमे तालमेल बिठाते बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है