बदनसीब मैं हूँ या तू हैं ये तो वक़्त ही बतायेगा..
बस इतना कहता हूँ अब कभी लौट कर मत आना....

लाख समझाया उसको कि दुनिया शक करती है
मगर उसकी आदत नहीं गई मुस्कुरा कर गुजरने की
Er kasz

मालूम नहीं क्यूँ मगर कभी कभी
अल्फाजों से ज्यादा मुझे तेरा नाम लिखना अच्छा लगता है

जरुरत तोड़ देती है इन्सान के सारे गरूर को .....
ना होती कोई मज़बूरी तो हर बंदा खुदा होता ।।

मेरी ज़िंदगी से खेलना तो हर एक की आदत बन गयी
काश खिलौना बन कर बिकते तो किसी एक के होते....

* बस एक यही बात उसकी मुझे अच्छी लगती है
उदास कर के भी कहती है
तुम नाराज़ तो नहीं हो ना

कुछ लोग मेरी दुनिया में खुशबु की तरहां हैं
रोज़ महसूस तो होते हैं पर दिखाई नहीं देते...

दुश्मन भी दुआ देते हैं मेरी फितरत ऐसी है
दोस्त ही दगा देते हैं मेरी किस्मत ऐसी है
er kasz

रिश्ता दिल से होना चाहिए शब्दों से नहीं
नाराजगी शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं

एक तेरी ख़ामोशी जला देती है इस पागल दिल को
बाकी तो सब बातें अच्छी हैं तेरी तस्वीर में

तवायफ फिर भी अच्छी के वो सीमित है कोठे तक
पुलिस वाला तो चौराहे पर वर्दी बेच देता है
er kasz

जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी
के जिस बेटी की खातिर बाप किडनी बेच देता है
er kasz

मुस्कुराने वाले को खुशनसीब मत समझो.
क्यूंकि कुछ लोग मुस्कुराते हैं गम छुपाने के लिए.

अगर किसी दिन रोना आये तो कॉल करना
हसाने की गारंटी नही देता हूँ पर तेरे साथ रोऊंगा जरुर

चले जायेंगे छोड़ कर तुझे तेरे हाल पर एक दिन
कद्र क्या होती है ये तुझे वक्त ही सीखा देगा