खामोशी भी बहुत कुछ कहती है.
पर कान नहीं दिल लगाकर सुन्ना पड़ता है..

इतना भी प्यार किस काम का.
भूलना भी चाहो तो नफरत की हद्द तक जाना पड़े.

ना करवटे थी, ना बैचेनियाँ थी..
क्या गज़ब की नींद थी मोहब्बत से पहले.

आँसु बड़े बेवफा होते है
उसे तो आँखो से दूर होने का बहाना चाहिए
Er kasz

हर बुराई का ईल्ज़ाम मुझ पर आ गया
कितना बुरा था मेरा अच्छा होना
er kasz

में कैसे उस शख्श को रुला सकता हुँ,,,
जिस को खुद मेने रो रो के मांगा हो

लोग मुझसे मेरी उदासी की वजह पूछते है
इजाजत हो तो तेरा नाम बता दूँ...??

मेरी बेबसी की इंतहा मत पूछो;
मैं रो के कह रहा था वो हंस के सुन रही थी.

याद तो आता हूँगा ना तुम्हें मैं
वफाओं का जब कहीं ज़िक्र होता होगा

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

अपने उसूल कभी यूँ भी तोड़ने पड़े खता उसकी थी
हाथ मुझे जोड़ने पड़े

पहले तो यूँ ही गुज़र जाती थी रात
मोहब्बत हुई तो रातों का अहसास हुआ

आँख चाहिए समझने के लिए
अकसर आपबीती होती है तमाम शायर के शायरी मेँ

तेरे ही वफ़ा के सिलसिले बदल गए हैँ
मुझे तो आज भी तुमसे अज़ीज कोई नहीँ

जिस घाव से खून नहीं निकलता
समज लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है