बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती
Er kasz

मुझे मजबूर करती हैं यादें तेरी वरना
शायरी करना अब मुझे अच्छा नहीं लगता

ऐ ज़िंदगी चार पल फ़ुर्सत के दे दे
या वो पल दे दे जब फ़ुर्सत कि ख्वाईश ही न थी…

ना शाख़ों ने जगह दी ना हवाओ ने बक़शा
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता
er kasz

शायरों ने इसे लफ़्ज़ों से सजा रखा है
वरना मोहोब्बत इतनी भी हसीन नहीं होती

बदल जाती हो तुम कुछ पल साथ बिताने के बाद
यह तुम मोहब्बत करती हो या नशा
Er kasz

अच्छा छोड़ो ये बहस और तक़रार की बातें
ये बताओ रात ख़्वाबों में क्यूँ आते हो

कितने आंसू बहाऊँ उस बेवफा के लिए
जिसको खुदा ने मेरे नसीब मैं लिखा ही नही

लगता है खुदा का बुलावा आने वाला है
आज कल मेरी झूठी कसम खा रही है वो "पगली"

मैं आज भी उसको उसी तरह चाहता हूँ
जैसे सूखता हुआ दरख़्त बारिश का तलबगार हो

एक तेरा ही नशा हमें मात दे गया वरना,
मयखाना भी हमारे हाथ जोड़ा करता था !
er kasz

दिल दिया है तो दिल मिला भी होगा किसी से
क्यों इश्क में हिसाब किए फिरते हो

सस्ता न समझ ये इश्क़ का सौदा पगली
तेरी हँसी के बदले पूरी जिंदगी दे रहा हूँ

मिटा दिया हर जगह से तेरा नाम मगर
आज भी जिन्दा है तेरा वजूद अश्को मे मेरे।

सिर्फ दो ही "वक़्त" पर तेरा "साथ" चाहिए,
एक तो "अभी" और एक "हमेशा" के लिये..