ज़िंदगी मे इससे बढकर रंज क्या होगा
उसका ये कहना की तू शायर है दीवाना नही

जो नासमझ है वो ही मोहब्बत करता है
वो मोहब्बत ही क्या जो समझ में आ जाए
er kasz

पलकों को अब झपकने की आदत नहीं रही
जाने क्या हुआ है तुम्हें देखने के बाद

ज़िंदगी मे इससे बढकर रंज क्या होगा
उसका ये कहना की तू शायर है दीवाना नही

वहा तक तो साथ चल जहा तक मुमकीन है।
जहा हालात बदल जाये तुम भी बदल जाना
Er kasz

बदन समेट के ले जाए जैसे शाम की धूप
तुम्हारे शहर से मैं इस तरह गुजरता हूँ

किसी की यादों में नही लिखता हूँ
हाँ लिखता हूँ तो किसी की याद जरूर आती है

हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब हैं
हाथ के अन्दर हैं पर काबू से बाहर होती है

ऐ इश्क जरा सुन एक बात बता मुझको
सबको ही आजमाते हो या मुझसे ही दुश्मनी है

सुना है आग लग गयी है बेवफाओ की बस्ती में
या खुदा मेरे मेहबूब की खैर रखना

दफ़न हे मुझमे मेरी कितनी रौनके मत पूछो
उजड़ उजड़ कर जो बसता रहा वो शहर हु मे

सुनो काबिल ए दाद हूँ मै
खुद ही बर्बाद हुये, ख़ुद का तमाशा भी ख़ुद ही देखा

नाराजगी डर नफरत या फिर प्यार
कुछ तो जरुर है जो तुम मुझ से दूर दूर रहते हो

अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा
जहाँ लोग मिलते कम झांकते ज़्यादा है
er kasz

इजाजत होतोतेरे पास आ जाऊ मै,,,.......?...
चाँद के पास भी तो एक सितारा रहता है ना....
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