गुफ्तगुँ करते रहा कीजिए यही इंसानी फितरत है
वरना बंद मकानों में अक्सर जाले लग जाते हैं

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं; जहाँ बजते हैं नक़्क़ारे वहीं मातम भी होते हैं।

हज़ारो मैं मुझे सिर्फ़ एक वो शख्स चाहिये
जो मेरी ग़ैर मौजूदगी मैं मेरी बुराई ना सुन सके

हमें पता था तेरी फितरत में है दगावाजी
हमने तो मौहब्बत ईसलिए कि थी शायद तेरी सोच बदल जाये

यूँ खाली पलकें झुका देने से नींद नहीं आती
सोते वही लोग है जिनके पास किसी की याद नहीं होती

गिले-सिकवे में उलझ कर रह गयी मौहब्बत अपनी
समझ में नही आता मौहब्बत चल रही थी या कोई मुकदमा

उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती....!!

कुछ रोज़ से यारो ये दिल नही लगता चैन नही मिलता
कि दर्द की आदत डालके उसने सितम करना छोड़ दिया

सब सो गये अपने हाले दिल बयां करके
अफसोस की मेरा कोई नहीं जो मुझसे कहे तुम क्यों जाग रहे हो

मेरी मोहब्बत की ना सही, मेरे सलीके की तो दाद दे,
तेरा जिक्र रोज करते हैं तेरा नाम लिए बगैर...!!!

अब सज़ा दे ही चुके हो तो मेरा हाल ना पूछना,
अगर मैं बेगुनाह निकला तो तुम्हे अफ़सोस बहुत होगा

उलझा हुआ हूँ अभी मैं अपनी उलझनों में
तुम ये ना समझना ना कि तुम्हें चाहा था बस दो दिन के लिए

अपनी कामयाबी के पिछे इतना दिमाग लगाओ की,दुसरों की निन्दा करने और सुनने का टाइम हीं ना बचे।

तुमने कहा था हर शाम तेरे साथ गुजारेगे,
तुम बदल चुके हो या फिर तेरे शहर में शाम ही नहीं होती?

तुमने कहा था हर शाम तेरे साथ गुजारेगे,
तुम बदल चुके हो या फिर तेरे शहर में शाम ही नहीं होती?