अरे बददुआएं ये किसी ओर के लिए रख
मोहब्बत का मरीज हूँ खुद ब खुद मर जाऊँगा ।
=RPS

तहज़ीब में भी उसकी क्या ख़ूब अदा थी..
नमक भी अदा किया तो ज़ख़्मों पर छिड़ककर..

वो जिधर देख रहे हैं सब उधर देख रहे हैं
हम तो बस देखने वालों की नजर देख रहे हैं

उसकी हर गलती माफ हो जाती है,
जब वो मुस्कुरा कर पुछती है
करवु छे आजे....?...😜
😜😜

मेरे पास से गुज़र गए मेरा हाल तक ना पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊँ वो दूर जा के रोए

उनको इन्साँ मत समझ हो सरकशी जिनमें जफर ; खाकसारी के लिये है खाक से इन्साँ बना।

ख्वाईशे कम पड गई तो ख्वाबो को जुटा दीया,
कुछ वो लुट गए कुछ हमने खुद लुटा दिया !

तुम आओ और कभी दस्तक तो दो इस दिल पर
प्यार उम्मीद से कम हो तो सज़ा-ऐ-मौत दे देना

वो मैय्यत पे आए मेरी,और झुक के कान में बोले
सच में मर गए हो या कोई नया तमाशा है

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से; ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं।

​तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था; फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला।

तुझसे अच्छे तो जख्म हैं मेरे
उतनी ही तकलीफ देते हैं जितनी बर्दास्त कर सकूँ

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर

मुझे गरीब समझ कर महफिल से निकाल दिया"
क्या चाँद की महफिल मे सितारे नही होते

जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा कैसे कहें; और जिसे जान लिया हो वो ख़ुदा कैसे हो।