तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है,
ख़बर तक तुम्हारी अब दूसरों से आती है..
तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है,
ख़बर तक तुम्हारी अब दूसरों से आती है..
आज फिर बैठा हूँ हिचकियों के इन्तिज़ार में.
देखूं तो सही तुम कब मुझे याद करते हो ।।
चाहते तो दोनों बहुत हैं एक दूसरे को मगर
ये हकीक़त मानता वो भी नहीं और मैं भी नहीं
इश्क में इसलिए भी धोखा खानें लगें हैं लोग
दिल की जगह जिस्म को चाहनें लगे हैं लोग
खो जाओ मुझ में तो मालूम हो कि दर्द क्या है? ये वो किस्सा है जो जुबान से बयाँ नही होता!
मैंने हर दर्द में इंसान को ही मरते देखा है,
कम्बख्त इश्क़ तुझे मौत क्यों नहीं आती..
उस शक्श से फ़क़त इतना सा ताल्लुक हैं मेरा
वो परेशान होता है तो मुझे नींद नही आती है
कैसे ये कह दूं की "तुमसे मोहब्बत नहीं"
मुँह से निकला झूठ "आँखों से पकड़ा जायेगा"
मुझको मेरे वजूद की हद तक न जान पाओगे….
बेहद , बेहिसाब, बेमिसाल बेइन्तहा हूँ मैं.…!!!!
मोहब्बत जीत जाएगी अगर तुम मान जाओ तो
मेरे दिल मैं तुम ही तुम हो अगर तुम जान जाओ तो
ये तो शौक है मेरा दर्द लफ्जो मे बयां करने का
नादान लोग हमे युं ही शायर समझ लेते है
सुना है आज उस की आँखों मे आसु आ गये
वो बच्चो को सिखा रही थी की मोहब्बत ऐसे लिखते है
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर,
अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती..
करेगा जमाना कदर हमारी भी एक दिन देख
लेना...
बस जरा ये भलाई की बुरी आदत छुट जाने दो...
सिर्फ तूने ही कभी मुझको अपना न समझा
जमाना तो आज भी मुझे तेरा दीवाना कहता है