कबर की मिट्टी हाथ में लिए सोच रहा हूं; लोग मरते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है!
कबर की मिट्टी हाथ में लिए सोच रहा हूं; लोग मरते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है!
आज मुस्कुराने की हिम्मत नहीं मुझ में..
आज टूट कर मुझे तेरी याद आ रही है..!!
जिस घाव से खून नहीं निकलता,,
समज लेना वो ज़ख्म किसी
अपने ने ही दिया है...!!!
कितनी शिध्दत से चाह था मेनें उसे
कोई दुशमन भी होता तो वो भी निभा देता..!!!!
पगली तेरी ख़ामोशी, अगर तेरी मज़बूरी है,
तो रेहने दे, इश्क़ कोनसा जरुरी है. . .
जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है
ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख
तू हँसी तो मैं भी तेरे साथ हँस दिया
तुम सो जाओ अपनी दुनिया में आराम से
मेरा अभी इस रात से कुछ हिसाब बाकी है
एक पहचानी सी दस्तक हुई दरवाजे पर
मैं तभी समझ गया की तेरी याद ही आई होगी
ऐ खुदा मुसीबत मैं डाल दे मुझे
किसी ने बुरे वक़्त मैं आने का वादा किया है
तुम्हे कया पता किस दर्द में हुँ में
जो कभी लिया नही उस कर्ज में हुँ में
लोग तो लिखते रहे मेरी पर ग़ज़ल
तुमने इतना भी ना पूछा, तुम उदास क्यों हो
जिन लम्हो का जिक्र आज तू हर एक से करती है
उनसे रुबरु तो हमने कराया था ना
इंसान से मुसीबतें डरती हैं इस क़दर;आती नहीं कभी अकेले वो किसी के सर।
मैं कैसे उस शक्श को रुला शकता हु
जीस शक्श को मैंने खुद रो रो कर माँगा था