तेरे बाद किसी को प्यार से ना देखा हमने,
हमें इश्क का शौक है, आवारगी का नही..
तेरे बाद किसी को प्यार से ना देखा हमने,
हमें इश्क का शौक है, आवारगी का नही..
मुझसे खुशनसीब हैं मेरे लिखे ये लफ्ज
जिनको कुछ देर तक पढ़ेगी निगाहे तेरी
काफ़िर के दिल से आया हूं मैं ये देखकर; ख़ुदा मौजूद है वहां पर उसे पता नहीं।
ख़ुदा तो मिलता है इंसान ही नहीं मिलता; यह चीज़ वो है जो देखी कहीं-कहीं मैंने।
कितने परवाने जले राज़ ये पाने के लिए; शमां जलने के लिए हैं या जलाने के लिए।
महबूब का घर हो या फरिश्तों की ज़मी; जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा।
लुत्फ़-ए-हमसायगी-शम्स-ओ-क़मर को छोड़ूँ; और इस खिदमत-ए-पैगाम-ए-सेहर को छोड़ूँ।
बाल सफेद करने में जिंदगी निकल जाती हैं !
काले तो आधे घंटे में हो जाते हैं !!
तुमने तो कहा था मुझे हर पल याद करोगे.,
फिर मेरी हिचकियां बंध क्यूँ हो गयी.!!
दूर गगन में उड़कर भी..लौट आते हैं..!
परिंदे इन्सान की तरह बेपरवाह नही होते...
हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया
हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई ...!
ख्वाब आँखों से गये नींद रातों से गयी
तुम गये तो लगा जिन्दगी हाथों से गयी
और अब ये कहता हूँ ये जुर्म तो रवा रखता; मैं उम्र अपने लिए भी तो कुछ बचा रखता।
“नसीब का लिखा तो मील ही जायेगा,
या रब,
देना हे तो वो दे जो तकदीर मे ना हो”..!!!
न चाहते हुए भी उसे छोड़कर आना पड़ा
वो इम्तिहान में ना आने वाले सवाल जैसा था