मेरा ईश्क हदें तब भूल जाता है
जब लड़ते लड़ते वो कहती है
लेकिन प्यार मैं ज्यादा करती हूं तुमसे

हज़ारो मैं मुझे सिर्फ़ एक वो शख्स चाहिये
,,
.
जो मेरी ग़ैर मौजूदगी मैं, मेरी बुराई ना सुन
सके ll

इतनी दूरियां ना बढ़ाओ थोड़ा सा याद ही कर लिया करो
कहीं ऐसा ना हो कि तुम-बिन जीने की आदत सी हो जाए…

किसी शायर से कभी उसकी उदासी की
वजह पूछना
.
दर्द को इतनी ख़ुशी से सुनाएगा की प्यार
हो जायेगा

मुझे हाथ की रेखाओं पर इसीलिए विश्वास नहीं है
कैद ये मेरी मुठ्ठी में है क्या खोलेगी किस्मत मेरी

अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा
जब रिहाई का वक्त आया तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी
Er kasz

सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद; क्या करते हम भी यारों; रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।

हाल तो पुंछ लू तेरा ...
पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी.......!!
ज़ब ज़ब सुनी हैं .....
कमबख्त मोहब्बत ही हुई हैं ......!!

वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों गम दे गया
हम कितने खुदगर्ज़ निकले कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा

टूटे हुवे सपनो और रूठे हुवे अपनों ने आज उदास कर दिया
वरना लोग हमसे मुस्कराने का राज पुछा करते थे

मैं सहंम जाता हूँ किसी भी पायल की
आवाज सुनकर !
वो याद आता है जिस बैवफा ने पैरों से
दिल रोंदा था !!

तेरे अलावा मुझे सिर्फ नींद से ही प्यार था
कमबख्त तेरे साथ रहने से वो भी अब बेवफाओ में शामिल हो गई

​​अब कहाँ ज़रूरत है हाथों में पत्थर उठाने की​​;​​​​तोड़ने वाले तो दिल जुबां से ही तोड़ दिया करते है।

एक ही चौखट प​र​ सर झुके ​​तो सुकून मिलता है​;​​​​ भटक जाते हैं वो लोग​ ​जिनके हजारों खुदा होते है।

हम तो आप कि मोहब्बत का प्यासे थे ईस लिये हाथ फैला दिये
वरना हम तो अपने आप के लिये भी दुआ नही मांगते.