इंसान की फितरत को समझते हैं ये परिंदे,
कितनी भी मोहब्बत से बुलाना मगर पास नहीं आयेंगे..
इंसान की फितरत को समझते हैं ये परिंदे,
कितनी भी मोहब्बत से बुलाना मगर पास नहीं आयेंगे..
कुछ इस तरह वो मेरी बातों का ज़िक्र किया करती है.... सुना है वो आज भी मेरी फिक्र किया करती है....!!
जब तक तुम्हें न देखूं! दिल को करार नहीं आता! अगर किसी गैर के साथ देखूं! तो फिर सहा नहीं जाता!
सरे राह जो उनसे नज़र मिली तो नक़्श दिल के उभर गए; हम नज़र मिला कर झिझक गए वो नज़र झुका कर चले गए।
ना जाने इतनी मुहब्बत कहां से आई है उसके लिये;कि मेरा दिल भी उसकी खातिर मुझसे रूठ जाता है।
मेरे दिल से खेल तो रहे हो तुम पर जरा सम्भल के
ये थोडा टूटा हुआ है कहीं तुम्हे ही लग ना जाए
उनके ख्याल से ही जब इतनी सुहानी लगती है ये दुनिया; सोचो अगर वो साथ होंगे तब क्या बात होगी।
लोग बेवजह ढूँढते हैँ खुदखुशी के तरीके हजार;
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इश्क करके क्यों नहीँ देख लेते वो एक बार।
आँखों में हया हो तो पर्दा दिल का ही काफी है; नहीं तो नक़ाब से भी होते हैं इशारे मोहब्बत के।
कुछ पल के लिए हमें अपनी बाहों में सुला दो; अगर आँखें खुली तो उठा देना ना खुली तो दफना देना।
तस्वीर में ख्याल होना तो लाज़मी सा है; मगर एक तस्वीर है जो ख्यालों में बनी है! ग़ालिब मिर्ज़ा!
सोचता हूँ कि अब तेरे दिल में उतर कर देखूं; कौन है वहां जो मुझको तेरे दिल में बसने नहीं देता!
आज मेने कहा उसको आँखे बन्द कर देख लो न
मुझे उसने कह
दिया मुझे तुम्हारा चेहरा याद नहीं....
ना इश्क़ का इज़हार किया ना ठुकरा सके हमें वो; हम तमाम ज़िंदगी मज़लूम रहे उनके वादा मोहब्बत के।
जिस्म तो बहुत संवार चुके रूह का सिंगार कीजिये; फूल शाख से न तोड़िए खुशबुओं से प्यार कीजिये!