लफ्ज...अल्फाज...कागज़ और किताब...!
कहां- कहां रखा हमने तेरी यादों का हिसाब...!!

जिस घाव से खून नहीं निकलता,,
समज लेना वो ज़ख्म किसी
अपने ने ही दिया है...!!!

धडकनो को भी रास्ता दे दीजिये
जनाब आप तो सारे दिल पर कब्जा किये बैठे है

जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है

सुधरी हे तो बस मेरी आदते वरना मेरे
शौक वो तो आज भी तेरी औकात से ऊँचे हैं

बताँऊ तुम्हें एक निशानी उदास लोगों की
कभी गौर करना यें हसंते बहुत हैं

अभी शीशा हूँ सबकी आँखों में चुभता हूँ
जब आईना बनूँगा सारा जहाँ देखेगा

दिल्लगी कर जिंदगी से दिल लगा के चल
जिंदगी है थोड़ी थोडा मुस्कुरा के चल

वो मुझे याद तो करती है मगर कुछ ऐसे
जैसे घर का दरवाजा किसी रात खुला रह जाए

आँखों से पानी गिरता है तो गिरने दीजिये
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी

इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं

दूर गगन में उड़कर भी..लौट आते हैं..!
परिंदे इन्सान की तरह बेपरवाह नही होते...

सोच ले ए इंसान कितना ताकतवर भगवान
जिसके तनिक इशारे पर हिल गया सारा जहान

तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समजा
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही

ना जीने का शौक है मरने की तलब रखते हैं
दीवाने हैं हम दीवानगी गजब रखते हैं