बैठे हुए देते हैं वो दमन की हवाएं
खुदा करे हम न कभी होश में आएं

“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी...
मुनासिब होगा कि अब मेरा हिसाब कर दे...!!” Er kasz

ख़ुदा तूने तो लाखों की तकदीर संवारी है
मुझे दिलासा तो दे के अब के मेरी बारी है

यह भी अच्छा है की हम किसी को अच्छे नहीं लगते
चलो कोई रोयेगा तो नहीं हमारे मरने के बाद

कभी हमसे भी पूछ लिया करो हाल-ए-दिल जाना
कभी हम भी ये कह सके कि दुआ है आपकी

👦‎मैं‬ ‪#‎लब‬ हूँ मेरी‬ बात ‪#‎तुम‬ हो ,
मैं ‪#‎तब‬ हूँ , ‪#‎जब‬ मेरे ‪#‎साथ‬ तुम हो .. Er kasz

मैं दुआ में उसे माँगता हूँ और वो किसी और को
कभी कभी सोचता हूँ भगवान किसकी सुनेगा ?

जाते हुए उस शख़्स ने एक अज़ब बद्दुआ सी दी
तुझे मिले दो जहाँ की ख़ुशियाँ पर कोई मुझ सा न मिले

अपनी सोच मैं औरों से जुदा रखता हूँ
लोग मंदिर मस्जिदों में ढूँढ़ते हैं मैं दिल में ख़ुदा रखता हूँ

जब सब तेरी मर्ज़ी से होता है..
तो ए खुदा ये बन्दा गुन्हेगार कैसे हो गया..

क्यूँ बार बार देखती हो शीशे को तुम
नज़र लगाओगी क्या मेरी इकलोती मोहबत को

माना कि बहुत कीमती है वक्त तुम्हारा मगर
हम भी नायाब हैं ये तुम्ही ने कहा था कभी.

तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया मैंने
लोग तो इबादत में पूरी कायनात मांगते हैं

मुझे भी पता था की लोग बदल जाते हैं अक्सर
मगर मैंने कभी तुम्हे लोगो मे गिना भी तो नहीं था

प्यार मोहब्बत आशिकी..
ये बस अल्फाज थे..
मगर.. जब तुम मिले..
तब इन अल्फाजो को मायने मिले !!
•• Er kasz