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Two Lines
Dard Shayari
आज बरसों का जख्म उभर कर
आज बरसों का जख्म उभर कर
आज बरसों का जख्म उभर कर सामने आया
जब उसने किसी गैर को अपना और मुझे अजनबी बताया।
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बीत जाती है जिसकी पूरी रात
चल ऐ दिल किसी अनजान सी
किसी रोज फुर्सत मिले तो आना
मेरी मोहोब्बत को ठुकरा दे चाहेमैं
काश मै लौट पाऊँ बचपन कि
ये जो उम्मीदें है मीठे जहर
आज आईने के सामने खड़े होकर
पता नहीं अब हक़ है भी
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मानना पड़ेगा मेरी वाली छुपन छुपाई
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