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Dard Shayari
चादँ के साथ कई दर्द पुराने
चादँ के साथ कई दर्द पुराने
चादँ के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले
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वो कहती हैं तुम छोड क्यों
बगैर जिसके एक पल भी गुजारा
पूछते हैं सब लोग तुम इतनी
इतना सा मेरे पे एहसान किया
चाह कर भी पूछ नहीं सकते
हर सजा कबूल की सर झूका
आज तो मौत सी थकावट है
हाथ ज़ख़्मी हुए तो कुछ अपनी
Hasne ko chand lamhe rone ko
मेरी जिन्दगी का खेल तो शतरंज
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