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Dard Shayari
पता नही ये बादल क्यूँ भटक
पता नही ये बादल क्यूँ भटक
पता नही ये बादल क्यूँ भटक रहे हैं फ़िज़ा में दर-बदर
शायद इनसे भी बात नहीं करता इनका अपना कोई
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ज़िन्दगी का ये हूनर भी आज़माना
वो लफ्ज कहां से लाऊं जो
दर्द लिखते रहे आह भरते रहेलोग
लगाकर आग़ सीने में कहाँ चले
लपेट ली है मैंने तेरे अहसास
किसी की यादों में नही लिखता
Dekha wahi hua na bichadne par
हमनेँ पूछाँ कैसे निकलती है जान
Kisi se kabhi koi umeed mat
मोहब्बत ज़िन्दगी बदल देती हैमिल जाए
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