लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
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लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
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हमारे तजूँबे हमें ये भी सबक सीखाता है
की जो मख्खन लगाता है वो ही चुना लगाता है
ये इश्क़ मोहब्बत की रिवायत भी अजीब है
पाया नहीं है जिसको उसे खोना भी नहीं चाहते
छोड़ तो दिया मुझे पर कभी ये सोचा है
तुमने अब कभी झूँठ बोला तो कसमें किसकी खाओगी
नींद आए या ना आए चिराग बुझा दिया करो
यूँ रात भर किसी का जलना हमसे देखा नहीं जाता
बहुत है मेरे मरने पर रोने वाले मगर
तलाश उसकी है जो मेरे रोने पर मरने की बात कह दे।
मरहम ना सही मेरे जख्मो पर नमक ही लगा दे..
यकिन मानो तेरे छुने से ये ठीक हो जायेंगें..
गलतफेमियों के सिलसिले आज इतने दिलचस्प है कि
हर ईंट सोचती है दीवार मुझपे टिकी है
नादान है बहुत जरा तुम ही समझाओ यार उसे
कि यूँ खत को फाड़ने से मोहब्बत कम नहीं होती
फासले बढते हैं तो गलतफहमीयां भी बढ जाती हैं
फिर वो भी सुनाई देता है जो कहा भी ना हो
गिरी मिली एक बोतल शराब की तो ऐसा लगा मुझे
जैसे बिखरा पड़ा था एक रात का सुकून किसी का
एक क़तरा ही सहीं मुझे ऐसी नियत दें मौला
किसी को प्यासा जो देखूँ तो दरियाँ हों जाऊँ
पानी से भरी आँखें लेकर वह मुझे घूरता ही रहा,
वह आईने में खङा शख्स परेशान बहुत था आज ..!!
मोहब्बत भी ईतनी शीद्दत से करो कि
वो धोखा दे कर भी सोचे के वापस जाऊ तो किस मुंह से जाऊ
हम तन्हाई में भी तुझसे बिछड़ जाने से डरते है,
तुझे पाना आभी बाकी है और खोने से डरते है!