मुहोब्बत नहीं थी उसे मुझसे ये जानता था मैं
फिर भी ये बात कहाँ मानता था मैं
er kasz
मुहोब्बत नहीं थी उसे मुझसे ये जानता था मैं
फिर भी ये बात कहाँ मानता था मैं
er kasz
काश तू सुन पाता खामोश सिसकियां मेरी आवाज़ करके रोना
तो मुझे आज भी नहीं आता !!. Er kasz
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तेरी मुहब्बत भी किराये के घर की तरह थी…. .
कितना भी सजाया पर मेरी नहीं हुई…. Er kasz
मोहब्बत की है "कोई कत्ल🔪 तो नहीँ"
क्युँ बार-बार कहते है लोग "जरा बचकर रहना" Er kasz
बख्शे हम भी न गए बख्शे तुम भी न जाओगे
वक्त जानता है हर चेहरे को बेनकाब करना
Er kasz
हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये
Er kasz
मजिंल पाना तो , बहुत दूर की बात है ..
गुरूर में रहोगे तो , रास्तें भी न देख पाओगे.......Er kasz
वो अक्सर देता है मुझे मिसाल परिंदों की
साफ़ साफ़ नहीं कहता के मेरा शहर छोड़ दो
अगर होता है इत्तेफाक़ तो यूँ क्यों नहीं होता
तुम रास्ता भूलो और मुझ तक चले आओ
सुखी होने के चक्कर में जो पूरी ज़िंदगी दुःखी रहता है
शायद उसी का नाम इन्सान है
ये भीनी भीनी सी जो मेरी लिखावट है
मेरी इस स्याही में थोड़ी अश्कों की मिलावट है
लफ्ज़ों में वो बात कहाँ जो मज़ा आँखों ही आँखों में बात करने का हैं
वो कमाल हैं
दोस्तों ने पूछा किसने तकलीफ दी है
आइने के आगे खड़े थे सामने की तरफ उंगली उठ गई
खुदा ने सब्र करने की तौफ़ीक़ हमें बख्शी है
अरे जी भर के तड़पाओ शिकायत कौन करता है
क्यों ना सज़ा मिलती हमें मोहब्बत मैं
आखिर हम ने भी तो बहुत दिल तोड़े तेरी खातिर