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गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हुँ अपने घर के संस्कारो का
वरना मैं भी लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर रखता हुँ
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मदहोश होता हूँ तो दुनियाँ को
कोई हमे भी सिखा दो ये
क्यों पहनती हो चूड़ी क्यों पहनती
नाम कमाना पड़ता हैखैरात में बदनामी
इस रात की उदासियों से पूछो
बड़ी सादगी से उसने कह दिया
बात तो सिर्फ जज़्बातों की है
इंसान को इंसान धोखा नहीं देताबल्कि
इक आग का दरिया हैं मोजों
लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताबकहाँ कहाँ
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