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Two Lines
Kashish Shayari
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को
बिछुड़कर सहेली से घर शाम को जाती हो
भरी दोपहरी तन बेचकर कितने दम कमाती हो
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अगर किसी दिन तुम्हे रोना आये
haQikat to bas Etni haike vo
उधर वे चाल चलतें हैं इधर
सुनी सुनाई बात नही है अपने
कहीं तुम भी न बन जाना
मेरी तङप तो कुछ भी नही
ना शाख़ों ने जगह दी ना
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