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Two Lines
Kashish Shayari
उधर वे चाल चलतें हैं इधर
उधर वे चाल चलतें हैं इधर
उधर वे चाल चलतें हैं इधर हम जान लेते हैं
नजर पहचानने वाले नजर पहचान लेते हैं
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जब वो मुझसे नाराज होती थी
अब यूँ भी न परखो मेरी
ना शाख़ों ने जगह दी ना
जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र
दम तोड़ देती है माँबाप की
अक्सर वही लोग उठाते हैं हम
कहना ही पड़ा उसे शायरी पढ़
बहुत रोई होगी वो खाली कागज
हाल तो पुछ लु तेरा पर
Naraj ho jatye h wo waffa
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