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Kashish Shayari
जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र
जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र
जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र मेरा
हम भी देखें हम टूट कर कब तलक बिखरते हैं
er kasz
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हमारे पिछे चाहे हमे कोई कूछ
सुन कर ग़ज़ल मेरी वो अंदाज़
अगर किसी दिन तुम्हे रोना आये
बड़ी सादगी से उसने कह दिया
मैं वो हूँ जो कहता था
अगर मेरी शायरियों से बुरा लगे
अपनी आदतों के अनुसार चलने में
सुना है खुदा के दरबार से
जिन्दगी की उलझनों ने कम कर
इस धरती से उस अम्बर तक
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